यह दो वर्ष पहले की बात है जब मुझे महान उर्दू शायर मिर्जा ग़ालिब पर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल होने का मौका मिला। मेरी दिलचस्पी की वजह पाकिस्तान से आए प्रसिद्ध कलाकार, श्री ज़िया मोहियुद्दीन थे जो गालिब की ग़ज़लों को अपनी खूबसूरत और प्रभावी आवाज़ में पेश करने वाले थे। गालिब के जिन पत्रों का उन्होंने चुनाव किया था वह उस महान शायर की जिंदगी के गहरे राजों को खोलने की अद्भुत क्षमता रखते हैं और जिसे उन्होंने अपनी जिंदगी के सबसे खतरनाक और बुरे दौर में लिखा था। उसके साथ ही एक दूसरा आकर्षण था भारत की प्रसिद्ध गजल गायिका राधिक चोपड़ा जो गालिब की चुनिंदा गजलों को अपनी सुरीली और मोहित करने वाली आवाज में कमाल खूबी के साथ प्रस्तुत करने वाली थीं।
जिया मोहियुद्दीन पाकिस्तान के एक प्रसिद्ध अभिनेता, फिल्म निर्देशक, निर्माता और टेलीविजन ब्रोडकास्टर हैं। उन्होंने अनेक पाकिस्तानी तथा ब्रिटिश फिल्मों में अपनी अदाकारी का जौहर दिखाया है।
उनका जन्म अविभाजित भारत के समय फैसलाबाद शहर में हुआ था जब देश पर अंग्रेजों का राज था। उन्होंने अपना बचपन कराची में बिताया था।
दोनों कलाकार, जिया मोहियुद्दीन और राधिक चोपड़ा ने एक कमाल का समां बांधा। जिया साहब अपने मखसूस अंदाज और लबो लेहजे में उनके चंद खत पढते तो राधिका चोपड़ा उन खतों में बयान एहसासात को और गहराई बख्शने के लिए गालिब की गजलें अपनी मधुर आवाज में गातीं। जिन गजलों का उन्होंने चुनाव किया था वह गालिब की आसान मगर बेहद प्रसिद्ध और दिलों छू लेने वाली गजलें थीं जैसे कि :
बाज़ीच-ए-इतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शबे रोज तमाशा मेरे आगे
यानि दुनिया मेरे सामने एक बच्चों के खेल की तरह है जिसके रोज होते तमाशे को मैं बड़े गौर और इन्हेमाक के साथ देखता रहता हूं। या उनकी अन्य गजलें जैसे कि :
दिले नादां तुझे हुआ क्या है आखिर इस दर्द की दवा क्या है या फिर रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है या दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए दिल जब दर्द हो तो क्या कीजिए |
ज़िया मोहियुद्दीन और राधिका चोपड़ा दोनों का कमाल यह था कि उन्होंने कमाल हुनरमंदी के साथ इस कार्यक्रम को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया।